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Apra ekadashi 2023 ki katha ,puja vidhi, subhmuhrt... तारा रानी की अमर कथा /सम्पूर्ण कथा।

आप्रा एकादशी, हिन्दू पंचांग में अद्वितीय मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कहा जाता है। यह एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है और भगवान विष्णु की पूजा एवं वंदना का विशेष अवसर है। इस दिन व्रत रखकर भक्त अपने मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि का अनुभव करते हैं।  


       एकादशी की कथा निम्नलिखित है:


                     एक बार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन गुप्तयों के साथ वन में बसे हुए थे। एक दिन अर्जुन ने भगवान से पूछा कि उन्हें श्रेष्ठ व्रत कौन सा जानना चाहिए और जिसे करके सभी पापों से मुक्त हो सकें। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आप्रा एकादशी के व्रत के बारे में बताया। वह बताए गए रहस्यमयी व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसके करने वाले को आप्रा लोक में श्रेष्ठ गति प्राप्त होती है। इस कथा में राजा हरिश्चंद्र के बेटे वासु ने आप्रा एकादशी व्रत के द्वारा अपने पिता को चमत्कारिक आप्रा एकादशी की कथा जारी रखते हैं।     

            राजा हरिश्चंद्र के बेटे वासु ने अपने पिता को उसके पूर्वजों की देह वस्त्र प्रदान करने के लिए प्रेरित किया। इसके पश्चात राजा हरिश्चंद्र ने वासु से पूछा कि उन्होंने इसे कैसे प्राप्त किया है। वासु ने बताया कि उन्होंने आप्रा एकादशी के व्रत का पालन किया था और इससे उन्हें यह वरदान मिला है। राजा हरिश्चंद्र ने भी इस व्रत का आचरण किया और उन्हें अपने पूर्वजों की देह वस्त्र प्राप्त हुई। इसके बाद वे सभी आप्रा लोक में श्रेष्ठ गति को प्राप्त कर गए। आप्रा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पाप क्षय होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

यह व्रत भक्ति, त्याग और आत्मसंयम का प्रतीक है और भगवान विष्णु की कृपा को प्राप्त करने का मार्ग है। आप्रा एकादशी के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को अन्नदान, दान और धर्मिक कार्यों में अधिक समर्पण करना चाहिए। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति मिलती है। इस व्रत के दिन व्यक्ति को अन्य व्रतों के अलावा निराहार रहना चाहिए, जिससे उसके शरीर और मन की शुद्धि होती है। आप्रा एकादशी का व्रत करने के लिए अग्रिम रूप से द्वादशी तिथि की रात्रि में उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने और व्रत कथा का सुनने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। 


व्रत के दौरान व्यक्ति को मांस, अंडे, शाकाहारी खाद्य पदार्थों का त्याग करना चाहिए। आप्रा एकादशी को मान्यता के अनुसार व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, पापों का नाश होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने आप को आध्यात्मिक उन्नति और पूर्णता की ओर ले जा सकता है। यह कथा और व्रत विशेषता भारतीय संस्कृति में प्रचलित हैं, और इसे भक्ति और धार्मिकता के प्रतीक के रूप में मान्यता दी जाती है।

 अपरा एकादशी पूजा विधि (Apara Ekadashi 2023 Puja Vidhi) 

           
           आज के दिन सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। इसके लिए भगवान को जल, पीले रंग के फूल, माला, पीला चंदन, पान में सुपारी, बताशा, लौंग, इलायची और एक रूपए का सिक्का रख कर अर्पित करें।Tara Rani ki Katha महाराजा दक्ष की दो पुत्रियां तारा देवी और रुक्मण भगवती दुर्गा देवी की भक्ति में अटूट विश्वास रखती थी दोनों बहने नियम पूर्वक एकादशी का व्रत किया करती थी और माता के जागरण में एक साथ दोनों भजन और कीर्तन सुना करती थी|एकादशी के दिन एक बार भूल से छोटी बहन रुक्मण ने मांस खा लिया जब तारा देवी को पता लगा तो उन्हें रुक्मण पर बड़ा क्रोध आया और वह बोली कि तू है तो मेरी बहन परंतु मनुष्य देह पाकर भी तूने नीच योनि के प्राणी जैसा कर्म किया है तू तो छिपकली बनने योग्य है| ये पढ़े 
      
बड़ी बहन के मुख से निकले शब्दों को रुक्मण ने स्वीकार कर लिया और साथ ही प्रायचित का उपाय पूछा तारा ने कहा त्याग और परोपकार से सब पाप छूट जाते हैं| दूसरे जन्म में तारा देवी इंद्रलोक की अप्सरा बनी और छोटी बहन रुक्मण छिपकली की योनि में प्रायचित का अवसर ढूंढने लगी द्वापर युग में जब पांचों पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया था|तब उन्होंने दूत भेजकर दुर्वासा ऋषि सहित तेंतीस करोड़ देवी देवताओं को निमंत्रण दिया था|जब दूत दुर्वासा ऋषि के आंगन में निमंत्रण लेकर गया तो दुर्वासा ऋषि बोले यदि तेंतीस करोड़ देवी देवता उस यज्ञ में भाग लेंगे तो मैं उस में सम्मिलित नहीं हो सकता।



दूत तेंतीस करोड़ देवी देवताओं को निमंत्रण देकर वापस पहुंचा और दुर्वासा ऋषि का सारा वेदांत पांडवों को सुनाया कि वह सभी देवताओं को यज्ञ में बुलाने पर हमारे यज्ञ में नहीं आएंगे| वह सिर्फ खीर की कढ़ाई में गिरकर छुप गया एक छिपकली जो पिछले जन्म में तारा देवी की छोटी बहन रुक्मण थी तथा बहन के शब्दों को सर्वधारया कर इस जन्म में छिपकली बनी हैं और वह सर्प का भंडारे में गिरना देख रही थी|  products link 

 उसे त्याग और परोपकार की शिक्षा अभी तक याद थी वह भंडार घर के दीवार पर चिपकी और समय की प्रतीक्षा करती रही थी|कई लोगों के प्राण बचाने हेतु उसने अपने प्राण न्योछावर करने का मन ही मन संकल्प बना लिया था जब खीर भंडारे में दी जाने वाली थी सबकी आंखों के सामने वह छिपकली दीवार से कूदकर खीर की कड़ाही में जा गिरी|सभी लोग छिपकली को भला बुरा कहते हुए खीर की कढ़ाई को खाली करने लगे तभी उसमें सब ने एक मरे हुए सर्प को देखा|

अब सबको मालूम हुआ कि छिपकली ने अपने प्राण देकर उन सब के प्राणों की रक्षा की है|इस प्रकार उपस्थित सभी सज्जनों ने देवताओं ने उस छिपकली के लिए प्रार्थना की उसे सभी योनियों में उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त हो तथा अंत में वह मोक्ष को प्राप्त हो|तीसरे जन्म में वह छिपकली राजा सरपरस्त के घर कन्या बनी दूसरी बहन तारा देवी ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती के नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चंद्र के साथ विवाह किया|


 राजा सरपरस्त ने ज्योतिषियों से कन्या की कुंडली बनवाई ज्योतिषियों ने राजा को बताया कि यह कन्या राजा के लिए हानिकारक सिद्ध होगी इसलिए इसे मरवा दीजिए राजा बोले लड़की को मारने का पाप बहुत बड़ा है|मैं उस पाप का भागी नहीं बन सकता तब ज्योतिषियों ने विचार करके राय दी कि हे राजन आप एक लकड़ी के संदूक में ऊपर से सोना आदि जड़वा कर फिर उस संदूक के भीतर लड़की को बंद करके प्रवाहित कर दीजिए|

सोने चांदी से जड़ा हुआ संदूक भी अवश्य ही कोई लालच से निकाल देगा और आपकी कन्या को भी पाल लेगा अतः आपको किसी प्रकार का पाप भी नहीं लगेगा|ऐसा ही किया गया नदी में तैरता हुआ संदूक काशी के समीप भंगी को दिखाई दिया भंगी संदूक को नदी से बाहर निकाल लाया उसने जब संदूक को खोला तो सोने चांदी के अतिरिक्त अत्यंत रूपवान कन्या दिखाई दी|उस भंगी को कोई संतान भी ना थी 

तब उसने अपनी पत्नी को वह कन्या लाकर दी तो उसकी पत्नी की प्रसन्नता का ठिकाना ही ना रहा|उसने अपने संतान के ही समान उस बच्चे को छाती से लगा लिया भगवती वैष्णो मां की कृपा से उसके स्तनों में दूध उतर आया भंगी और उसकी पत्नी ने प्रेम से उस कन्या का नाम रुको रख दिया| रुको की सास महाराजा हरिश्चंद्र के घर सफाई का काम करने जाया करती थी एक दिन वह बीमार पड़ गई तो रुको महाराजा हरिश्चंद्र के घर काम करने के लिए चली गई ।


महाराजा की पत्नी तारामती ने जैसे ही रुको को देखा तो वह अपने पूर्व जन्मों के पुण्य से उसे पहचान गयी|तब तारावती ने रुको से कहा कि हे बहन तुम मेरे यहां निकट आकर बैठो महारानी की बात सुनकर रुको बोली रानी जी मैं तो नीची जात की भंगी हूं भला मैं आपके पास कैसे बैठ सकती हूं|तब तारामती ने कहा बहन पूर्व जन्म में तुम मेरी सगी बहन थी एकादशी का व्रत खंडित करने के कारण तुम्हें छिपकली की योन में जाना पड़ा था जो होना था|वह हो चुका अब तुम इस जन्म को सुधारने का उपाय करो तथा भगवती माता वैष्णो देवी की सेवा करके अपने इस जन्म को सफल बनाओ|

यह सुनकर रुको बड़ी प्रसन्न हुई और उसने उपाय पूछा रानी ने बताया कि वैष्णो माता सभी मनोरथो को पूरा करने वाली है| परिणाम यह हुआ जब वह बालक पांच वर्ष का हुआ तो उसे एक दिन माता चेचक निकल आई रुको दुखी होकर|अपने पूर्व जन्म की बहन तारामती के पास आयी और अपने बच्चे की बीमारी का सब वेदांत सुनाया तब तारामती ने कहा तू जरा ध्यान करके देख की माता के पूजन तथा जागरण में कोई भूल तो नहीं हुई| तब रुको को 6 वर्ष पुरानी बात याद आ गई कि मैंने तो जागरण और पूजन करवाया ही नहीं और उसने मन में ही अपने अपराध स्वीकार कर लिए और फिर से मन में निश्चय किया कि हे मां बच्चे को आराम होने पर इस बार अवश्य ही आपका जागरण और पूजन करवाऊंगी|भगवती वैष्णो देवी की कृपा से बच्चा दूसरे दिन स्वस्थ हो गया और बिल्कुल ठीक हो गया|

तब रुको ने देवी जी के मंदिर में जाकर पंडित जी से कहा कि मुझे अपने घर माता का जागरण करवाना है अतः आप मंगलवार को मेरे घर पधार कर मुझे कृतार्थ करें पंडित जी बोले अरे रुको तो यही पांच रुपये देजा हम तेरे नाम का यही जागरण करवा देंगे तू तो नीची जात की स्त्री है| इसलिए हम तेरे घर में जाकर देवी का जागरण नहीं कर सकते रुको ने कहा पंडित जी माता के दरबार में तो ऊंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं होता वह तो सब भक्तों पर समान रूप से कृपा करती हैं|

अतः आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिए इस पर पंडितों ने आपस में विचार कर कर कहा यदि महारानी तारामती तुम्हारे घर जागरण में पधारे तो हम भी आना स्वीकार करेंगे यह सुनकर जब रुको महारानी के पास गई और सारा वृत्तांत कह सुनाया तब तारामती ने जागरण में शामिल होने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया जिस समय रुको पंडितों से यह बात कहने गई कि तारामती रानी जागरण में आएंगी|उस समय सायन नाई ने बात को सुन लिया था और उसने महाराजा हरिश्चंद्र को जाकर सूचना दे दी राजा ने सायन नाई की बात को सुन कर कहा कि तेरी बात तो झूठी है|


महारानी भंगियों के घर जागरण में कभी नहीं जा सकती फिर भी परीक्षा लेने के लिए राजा ने उस रात अपनी उंगली में थोड़ा सा चीरे का निशान लगा लिया|जिससे राजा को नींद ना आवे रानी तारामती ने देखा अब जागरण का समय हो रहा है परंतु महाराज को नींद नहीं आ रही है|तो उसने माता वैष्णो देवी से मन ही मन प्रार्थना की हे माता आप किसी उपाय से मेरे महाराज को सुला दें ताकि मैं आपके जागरण में सम्मिलित हो सकूं|तब राजा को नींद आ गई तो तारामती ने रोशनदान से रस्सा बांधकर महल से उतरकर रुको के घर जागरण में जा पहुंची|

उस समय जल्दी के कारण रानी के हाथ से रेशमी रुमाल तथा पांव का एक कंगन रास्ते में ही गिर पड़ा|उधर थोड़ी देर बाद राजा हरिश्चंद्र की नींद खुल गई तब वह भी रानी का पता लगाने के लिए निकल पड़े|मार्ग में कंगन और रुमाल उन्होंने देखा और राजा ने दोनों चीजें रास्ते से उठाकर अपने पास रख ली और जागरण वाले स्थान पर जा पहुंचे|

जहां जागरण हो रहा था वहां एक कोने में चुपचाप बैठ कर सब दृश्य देखने लगे जब जागरण समाप्त हुआ| तो सबने माता की आरती व अरदास की उसके बाद प्रसाद बांटा गया रानी तारामती को जब प्रसाद मिला तो उसने झोली में रख लिया|यह देखकर लोगों ने पूछा कि आपने प्रसाद क्यों नहीं खाया यदि आप प्रसाद नहीं खाएंगे तो कोई भी प्रसाद नहीं खाएगा|रानी मुस्कुराते हुए बोली कि तुमने जो प्रसाद दिया वह मैंने अपने महाराज के लिए रख लिया है|
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अब मुझे मेरा प्रसाद दो अबकी बार प्रसाद लेकर तारा रानी ने खा लिया इसके बाद सब भक्तों ने माता का प्रसाद खाया|इस प्रकार जागरण समाप्त करके प्रसाद खाने के पश्चात रानी तारामती महल की ओर चल पड़ी तब राजा ने आगे बढ़कर कहा की तुमने नीचे के घर का खाना खाकर अपना धर्म भ्रष्ट किया है| अब तुझे मैं इस घर में कैसे राखु तूने तो कुल की मर्यादा वह मेरी प्रतिष्ठा का भी कोई ध्यान नहीं रखा जो प्रसाद तू अपनी झोली में रखकर मेरे लिए लाई है|उसे खिलाकर मुझे भी अपवित्र करना चाहती है क्या ऐसा कहते हुए जब राजा ने झोली की ओर देखा तब भगवती वैष्णो देवी की कृपा से प्रसाद के स्थान पर उसमें चंपा, गुलाब, गेंदा के फूल और कच्चे चावल और सुपारियां दिखाई दी|यह चमत्कार देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गया राजा हरिश्चंद्र तारा को महल में साथ लेकर लौट आए|रानी ने ज्वाला माई की शक्ति से बिना किसी माचिस या चमक पत्थर की सहायता से राजा को अग्नि प्रजलित करके दिखाई जिसे देखकर राजा का आश्चर्य और बढ़ गया| 

राजा के मन में भी देवी के प्रति विश्वास और श्रद्धा जाग उठी राजा ने रानी से कहा की मैं माता के प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहता हूं रानी बोली महाराज प्रत्यक्ष दर्शन पाने के लिए बहुत बड़ा त्याग होना चाहिए| यदि आप अपने पुत्र रोहिताक्ष की बलि दे सके तो आपको दुर्गा जी के प्रत्यक्ष दर्शन हो सकते हैं राजा के मन में तो देवी के दर्शन की लगन हो गई थी|राजा ने पुत्र मोह त्यागकर रोहिताक्ष का सर देवी के चरणों में अर्पित कर दिया ऐसी सच्ची श्रद्धा और बलिदान देख दुर्गा माता सिंह पर सवार होकर उसी समय वहां प्रकट हो गई और राजा हरिश्चंद्र दर्शनकृत्य के कृतज्ञ से मरा हुआ पुत्र रोहिताश भी जीवित हो गया|



यह देखकर राजा हरिश्चंद्र गदगद हो गए इसके बाद सुखी रहने का आशीर्वाद देकर माता अंतर्ध्यान हो गई|राजा ने तारा रानी की भक्ति की प्रशंसा करते हुए कहा कि हे तारा मैं तुम्हारे आचरण से अति प्रसन्न हूं मेरे धन्य भाग हैं जो तुम मुझे पत्नी के रूप में प्राप्त हुई हूं|इसके पश्चात राजा हरिश्चंद्र ने तारा रानी की इच्छा अनुसार अयोध्यापुरी में माता का भव्य मंदिर तैयार करवा दिया और सुख भोगने के पश्चात राजा हरिश्चंद्र ,रानी तारा और भंगन रुक्मण तीनों ही मनुष्य जीवन से छूट कर देवलोक को प्राप्त हुए|

FAQ-Q1 तारा रानी के पति का नाम क्या था?
           A.पंडित ने आगे बताया कि सबकी प्रार्थना से ही वो छिपकली तीसरे जन्म में आप जैसे प्रतापी राजा के घर बेटी के रूप में पैदा हुई है। वहीं, तारा ने दूसरे जन्म 'तारामती“ के रूप में लिया और अयोध्या के राजा हरिश्चन्द्र से शादी की।
        Q2.मां तारा का बीज मंत्र क्या है?       
        A.  मां तारा कवच-
         ॐ कारो  मे शिर: पातु ब्रह्मारूपा महेश्वरी । ह्रींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ।। स्त्रीन्कार: पातु वदने लज्जारूपा महेश्वरी । हुन्कार: पातु ह्रदये भवानीशक्तिरूपधृक् 
          Q3.क्या तारा और दुर्गा एक ही हैं?
            A.  तारा दस महान ज्ञान देवी (दास महाविद्या) में से दूसरी हैं। तांत्रिक परंपराओं में, उन्हें दुर्गा, पार्वती या महादेवी का अवतार माना जा सकता है ।
           

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