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भगवान श्रीकृष्ण ने यहां की थी सफेद शिवलिंग की स्‍थापना, पांडवों ने महाभारत युद्ध में जीत के लिए की थी प्रार्थना

 महाकाव्य के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने वायु पुराण के अनुसार अर्जुन को महाभारत युद्ध में जीत के लिए शिवलिंग की स्थापना करने का सुझाव दिया था। 



उन्होंने बताया था कि पांडवों को अपनी सेना को शिवलिंग के प्रतीक के रूप में स्थापित करके शिवजी की प्राप्ति करनी चाहिए। अर्जुन ने इस सलाह का पालन करते हुए शिवलिंग की स्थापना की और पूरे महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों ने इस शिवलिंग के सामर्थ्य और मदद की प्रार्थना की। यह प्रार्थना उनकी विजय के लिए हो रही थी। 
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 इस प्रकार, यह सम्बंध भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों, और महाभारत युद्ध के बीच एक मान्यता या कथा के रूप में प्रस्तुत की जाती है। हालांकि, धार्मिक कथाओं और पुराणों में ऐसे कई अलग-अलग विवरण और कथाएं होती हैं और ये कथाएं विभिन्न संस्कृति और परंपराओं में भिन्न-भिन्न रूपों में प्रचलित होती हैं। पूर्वाग्रह के साथ इस कथा को मान्यता दी जाती है कि श्रीकृष्ण ने पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए सफेद शिवलिंग की स्थापना करने की सलाह दी थी।

 शिवलिंग शिवजी के प्रतीक माने जाते हैं और उन्हें युद्ध के समय शक्ति और सहायता का प्रतीक माना जाता है। सफेद शिवलिंग की स्थापना की गई और पांडवों ने उसे पूजा की और श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में उन्होंने शिवजी से युद्ध में सफलता की कामना की। इस प्रकार, यह प्रार्थना पांडवों के विजय के लिए की गई थी। 



 महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय और कौरवों की हार के बाद, पांडवों को महाभारत के धर्मराज युधिष्ठिर ने उनकी विजय का कारण भगवान शिव की कृपा और सहायता मानी। 
;यह कथा विभिन्न धार्मिक परंपराओं और क्षेत्रों में व्याप्त है और इसे विभिन्न रूपों में सुनाया जाता है। 

यह एक मान्यता है और इसे श्रद्धा और आस्था के साथ स्वीकार किया जाता है। तैत्तरीय आरण्यक में कुरुक्षेत्र भूमि की सीमाओं का है उल्लेख हैं ये विशेष रूप से तैत्तरीय आरण्यक, जो यजुर्वेद का एक भाग है, में कुरुक्षेत्र भूमि की सीमाओं का उल्लेख है। 

यह विशेष आरण्यक तैत्तरीय शाखा के अंतर्गत आता है। यहां कुरुक्षेत्र को "मध्य देश" (Madhyadesha) के रूप में संबोधित किया जाता है और इसकी सीमाएं विस्तारपूर्वक वर्णित की जाती हैं। 


 यहां कुरुक्षेत्र को पूर्व में यमुना नदी, पश्चिम में द्रिषद्वती नदी, उत्तर में उत्तरापथ (एक पुराणिक मार्ग), और दक्षिण में अरजुनी वन (जहां पर्यटन किया जाता है) के द्वारा सीमाबद्ध किया जाता है। यह उल्लेख पुराणों और वेदों के अनुसार कुरुक्षेत्र की महत्वपूर्णता और उसकी सीमाओं के बारे में हमें जानकारी प्रदान करता है। 

कुरुक्षेत्र महाभारत के युद्ध का स्थान माना जाता है और इसे आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। तैत्तरीय आरण्यक में कुरुक्षेत्र के सीमाओं का विवरण उपलब्ध होता है। 

इसके अनुसार, कुरुक्षेत्र को पूर्व में यमुना नदी, पश्चिम में द्रिषद्वती नदी, उत्तर में उत्तरापथ और दक्षिण में अर्जुनी वन द्वारा सीमाबद्ध किया गया है। यमुना नदी कुरुक्षेत्र की पूर्वी सीमा है और इसे पवित्र नदी के रूप में माना जाता है। द्रिषद्वती नदी कुरुक्षेत्र की पश्चिमी सीमा है और यह भी महत्वपूर्ण नदी है।


 उत्तर में उत्तरापथ की सीमा होती है, जो एक प्राचीन मार्ग है और उत्तरी भारत में पर्यटन का महत्वपूर्ण स्थान है। अर्जुनी वन कुरुक्षेत्र की दक्षिणी सीमा है और यहां पर्यटन किया जाता है। कुरुक्षेत्र महाभारत काल में महत्वपूर्ण युद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था और यहां ही पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध हुआ था। इसे आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी स्थान पर भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 


उन्होंने अर्जुन को गीता उपदेश दिया और उन्हें अपनी अद्वैतवादी तत्त्वों का ज्ञान दिया। यह गीता महाभारत का एक महत्वपूर्ण अध्याय है और इसे भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। कुरुक्षेत्र का इतिहास महाभारत के बाद भी महत्वपूर्ण रहा है। यह एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने प्रमुख दर्शन केंद्रों में से एक स्थापित किया था। 

इसके अलावा, कुरुक्षेत्र में विश्वविद्यालय, प्राचीन मंदिर और अन्य पुरातात्विक स्थलों की भी मौजूदगी है। कुरुक्षेत्र को एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान के रूप में स्वीकार किया जाता है। 

इसे धार्मिक तथा सांस्कृतिक आयाम के साथ जोड़कर भारतीय इतिहास और महाभारत के अद्वितीय पहलुओं का भी प्रतीक बनाया जाता है। इसलिए, कुरुक्षेत्र भ इसे भारतीय इतिहास और महाभारत के अद्वितीय पहलुओं का प्रतीक माना जाता है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम के साथ जुड़े हुए हैं। 



 कुरुक्षेत्र धार्मिक और आध्यात्मिक यात्राओं का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर्यटक और श्रद्धालुओं को महाभारत से जुड़ी प्रमुख स्मारक स्थलों का दर्शन करने का अवसर मिलता है। कुरुक्षेत्र में कई प्राचीन मंदिर, तीर्थ स्थल और श्रद्धालुओं के परंपरागत गाथाओं की अवशेष हैं। 

यहां पर्यटकों को महाभारत के युद्ध स्थलों का भी अनुभव मिलता है, जैसे ज्योतिसर तालाब, भीष्म कुंड, जीवनदान ग्यारस्थान और बहुत से अन्य स्मारक स्थल। इसके अलावा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना का भी स्थान है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एक प्रमुख शिक्षा संस्थान है और विभिन्न विषयों में उपराधीनता में उच्च स्नातक, स्नातकोत्तर, और विशेषज्ञ कार्यक्रम प्रदान करता है। 
                          
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इसके अलावा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय भाषा, साहित्य, धर्मशास्त्र, इतिहास, ज्योतिष, वाणिज्य, आदि क्षेत्रों में अग्रणी शोध एवं शिक्षण कार्यक्रमों को संचालित करता है। इसे एक शिक्षा केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है 
                  और यहां छात्रों को शिक्षा, संस्कृति, और धार्मिक ज्ञान की अद्यतन सामरिक जरूरतों के साथ प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, कुरुक्षेत्र भारतीय इतिहास के अद्वितीय पहलुओं का प्रतीक रहा है। महाभारत का युद्ध, जो कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था, विश्वभर में मशहूर है।


 इस युद्ध में कौरवों और पांडवों के बीच आयोजित हुआ था और वहां धर्मयुद्ध के महत्वपूर्ण प्रश्नों को उठाया गया था। महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन को श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता का उपदेश दिया था, जो मानवता के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में से एक है। यहां पर्यटक और श्रद्धालुओं को भगवद्गीता स्मारक, जिसमें अर्जुन और श्रीकृष्ण का मूर्तिमान है, देखने का भी अवसर मिलता है। 

 कुरुक्षेत्र का महत्वपूर्ण धार्मिक आयाम इसे हिंदू धर्म के एक पवित्र स्थान के रूप में स्वीकार करता है। हिंदू धर्म के अनुसार, कुरुक्षेत्र भगवान विष्णु का अवतारी स्थान माना जाता है और यहां धार्मिक कर्मों का आचरण और पुण्य करने का अवसर मिलता है। यहां पर्यटक और श्रद्धालुओं को ब्रह्म सरोवर, जहां स्नान का महत्व माना जाता है, और अन्य पवित्र स्थलों का भी दर्शन करने का अवसर मिलता है। साथ ही, कुरुक्षेत्र का महत्वपूर्ण संस्कृतिक आयाम भी है।



 यहां पर्यटक और श्रद्धालुओं को भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अनुभव करने का अवसर मिलता है। यहां पर्यटक देवी महाभागवती मंदिर, जिसे मां काली का एक प्रमुख पूजा स्थल माना जाता है, 
             और अन्य प्राचीन मंदिरों का दर्शन कर सकते हैं। सम्पूर्ण कुरुक्षेत्र के अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कृतिक आयामों में श्रीकृष्ण जन्मस्थान, जिसे श्रीकृष्ण जी का जन्मस्थान माना जाता है, भी शामिल है। यह स्थान पर्यटकों को श्रीकृष्ण के बाल लीला की यादें और उनके आद्यात्मिक उपदेशों का अनुभव करने का मौका देता है। 


 कुरुक्षेत्र भारतीय साहित्य और संस्कृति के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। इस स्थान पर्यटकों को महाभारत के किंवदंतियों, धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के महत्वपूर्ण स्थलों का अध्ययन करने का अवसर मिलता है। 


यहां श्रद्धालुओं को जगदीश विश्वकर्मा मंदिर, जिसे महाभारत के समय स्थापित माना जाता है, और अन्य पुरातात्विक स्थलों का भी दर्शन करने का अवसर मिलता है। इसके साथ ही, कुरुक्षेत्र के विविध संस्कृतिक कार्यक्रम और मेलों का आयोजन भी होता है। 


ये मेले पर्यटकों को स्थानीय कला, शिल्प, गीत, नृत्य और वाद्य आदि का आनंद लेने का अवसर प्रदान करते हैं। यहां पर्यटक  के विभिन्न पहलुओं को देखने और सीखने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। इन मेलों में स्थानीय कलाकारों द्वारा नृत्य, संगीत, रंगमंच प्रदर्शन, लोक गीतों का गायन और हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी आयोजित की जाती है।


 ये मेले पर्यटकों को देश की विविधता और संस्कृतिक विरासत को अनुभव करने का अवसर प्रदान करते हैं। कुरुक्षेत्र अपने भौतिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ ही एक पुरातात्विक स्थल भी है। यहां पर्यटक अस्तित्व में आए धार्मिक स्थलों, पुरातात्विक संरचनाओं और स्मारकों का दर्शन कर सकते हैं। 


कुरुक्षेत्र का इतिहास विशाल है और इसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है। यहां पर्यटक अन्यमति महाभारत के प्रमुख स्थलों जैसे ज्योतिसर, भीष्म कुंड, जीवन्त ज्योति मंदिर और व्यास गढ़ को देख सकते हैं। कुरुक्षेत्र एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल के रूप में भारतीय और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

FAQ-Q1.क्या श्रीकृष्ण को पता था कि पांडव ही युद्ध जीतेंगे।

A.जैसा कि महाभारत में वर्णित है, श्रीकृष्ण ने अपने अद्भुत बोध और योग्यता के कारण महाभारत युद्ध के नतीजों को पहले से ही जाना था। उन्होंने अर्जुन को भगवद्-गीता के माध्यम से दिव्य ज्ञान दिया था और उन्होंने उन्हें युद्ध के महत्वपूर्ण मोमेंट्स में मार्गदर्शन भी किया था। श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा था कि वे युद्ध में विजयी होंगे, परंतु इसमें कुछ बदलने वाला है। यह बदलाव बहुतों को मरकर जीवित छोड़ जाने वाले होंगे, जो युद्ध की समाप्ति के पश्चात उत्पन्न होंगे।
Q2.महाभारत कब हुआ।
A.महाभारत युद्ध करीब 3102 ईसा पूर्व हुआ था। इसका आधार आदिपर्व की महाभारत युद्ध की विविध प्रमाणिक तिथियों पर प्रदर्शित एकाधिक वर्णनों पर रखा जाता है,।
Q3.भगवान श्री कृष्ण का निधन कब हुआ?
A.भगवान कृष्ण का निधन द्वापर युग के अंत में हुआ, जब उन्होंने महाभारत युद्ध के बाद अपनी भूमिका पूरी कर दी थी। बहुत सामान्य रूप से मान्यता प्राप्त है कि भगवान कृष्ण का निधन कुरुक्षेत्र में हुआ और वह ब्रज में गया था।
आदिपर्व, जो महाभारत का एक प्रमुख ग्रंथ है, के अनुसार, भगवान कृष्ण का निधन महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद हुआ।

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